આર્ટીકલ

6/recent/ticker-posts

समाज का नेतृत्व कर्ता कैसा हो..?.

 


समाज का नेतृत्वले कर्ता कैसा हो.....?

       सभी को साथ लेकर चलने की भावना मन में रखना बेहद जरूरी हैं...... एक अकेला नेतृत्व कर और वाहवाही लेना उचित नही है... जहाँ विपक्ष नही वहाँ शासक पक्ष सही कार्य कभी नही कर सकता उसे लगता है में और मेरी टीम जो कार्य समाज हित में कर रही है वो सर्वदा सही है लेकिन ये उसका और उसकी टीम का भ्रम है। समाज का नेतृत्व का प्रश्न है तो हमे यह कभी नहीं भुलना चाहिये कि समाज को दिशा देना, नई सोच प्रदान करना, भावी पीढ़ी का मार्गदर्शन करना, समाज के लोगों में त्याग की भावना पैदा करना, समाज के प्रति लोगो को उतरदायी बनाना, समाज के नेतृत्व करने वालों का ही कार्य है ।


जहाँ तक नेतृत्व के गुणों का प्रश्न है - नेतृत्व वर्तमान समय मे देखा जाय तो देश और समाज का नेतृत्व युवा पीढ़ी को सोपा जाना चाहिये और इसकी निगरानी और मार्गदर्शन समाज के वरिष्ठ, बुद्धिमान, डॉक्टर, इन्जिनियर, वकील, जजों द्वारा की जानी चाहिये क्योंकि यह ध्यान देने योग्य बात है कि गाड़ी बिल्कुल नई हो और उसके डाईवर की उम्र 55 से 75 वर्ष की उम्र की हो, तो गाड़ी अपना अधिकतम माइलेज कैसे देगी। जिस व्यक्ति का जीवन अब अन्तिम पढाव मे चल रहा हो, वो समाज को मंजिल तक कैसे पहुचाएगा यह एक विचारणीय प्रश्न है।


समाज मे एक नयी उर्जा का संचार करने के लिए नये उर्जावान नेतृत्व की आवश्यकता है । आज देश और समाज की आबादी का 70 प्रतिशत युवा वर्ग है, ऐसी स्थिती मे युवाओं को समझने के लिए, समाज कि बागडोर युवाओ के हाथो मे होनी चाहिये, चाहे वो देश के नेतृत्व की बात हो या समाज के नेतृृत्व की या संगठन के नेतृृत्व की, नेतृत्व युवाओ को दिया जाना चाहिये लेकिन निगरानी वरिष्ट बुद्धिजीवियो द्वारा की जानी चाहिये। ताकि समाज की गाड़ी अपना सम्पूर्ण माइलेज दे सके, क्योकि किसी आधुनिक गाड़ी को चलाने वाला डाइवर जब तक गाड़ी की तरह आधुनिक नया और युवा नही होगा तब तक गाड़ी का वास्तविक माइलेज हासिल नही किया जा सकता। यह बुरा मानने कि बात नही है, लेकिन यह एक सच्चाई है कि, आज समाज हो या देश, संस्थाऐ हो या संगठन, सभी का नेतृत्व 55 से 75 वर्षो के लोगो के पास किडनेप है, वो उन पर कब्जा किए बेठे है उन्हें आज भी भम्र है कि समाज को हम ही नेतृत्व दे सकते है, उम्र के इस पड़ाव मे भी उन्हे यह नही लगता है कि उन्हे अब नेतृत्व कि गद्धी को छोड़कर, समाज कि युवा पीढ़ी को बागडोर सोपनी चाहिये, ताकि वो अपनी उर्जा और जोश का उपयोग करते हुए विकासकी गति को बढावा दे । यह विचारणीय और समझने की बात है की, किसी भी पद पर एक कार्यकाल यानी 2/3 या ज्यादा से ज्यादा 5साल किसी भी व्यक्ति को अपने आप को नेतृत्त्वकर्ता सिद्ध करने के लिए पर्याप्त होता है, और इसके बाद भी अगर समाज स्कूल, कोलेज, हॉस्टेल, हॉस्पिटल, ट्रेनिंग सेन्टर, जैसी सुविधाओं से वंचित है और आम जनता यदि नही चाहती, तो भी वह नेतृत्व करना चाहता है तो यह क्या है ?, ऐसे व्यक्ति द्वारा समाज और देश के साथ अपने आपको थोपने जैसा है, क्या एक कार्यकाल का समय उसे अपने आपको सिद्ध करने के लिए पर्याप्त ही था, जो वह केवल कुर्सी के लोभ के चक्कर मे उसे पकड़कर बेठाना चाहता है और क्या गारन्टी है कि वो अब कुछ नया कर देगा जो पिछले कार्यकाल मे नही कर पाया, इसकी उम्मीद करना बेमानी है


इसका सीधा प्रभाव समाज की उस युवा पीढ़ी पर पड़ता है जिसे अच्छी सुविधाएं, रोजगार, अच्छी शिक्षा, आधारभुत साधन मिलने चाहिये थे, जिसके लिए वो आज भी जूझ रहा है। इसमें किसका दोष है?, युवा पीढी का या शासन करने वाले का?


समाज के नेतत्व में गुणों की बात होतो, युवा पीढ़ी के उच्च शिक्षित व आत्मनिर्भर लोगो को आगे लाये जाने की आवश्यकता है, क्योंकि जो स्वयं आत्मनिर्भर नही होगा, वो समाज को क्या आत्मनिर्भर बनायेगा, क्योंकि आत्मनिर्भर व्यक्ति ही समाज को दिशा दे सकता है क्योंकि वह हर रोज अपने आपको सफल बनाने के लिए समाज और देश में अपने आपको रोज सिद्ध करता है।


जहाँ तक हमारे सरकारी ऑफिसर व बुद्धिजीवी वर्ग की बात है वो यदि नेतृत्व करना चाहे तो उन्हें सरकारी सेवा में, इन पावर रहते हुए समाज की सेवा करनी चाहिये ताकि वो अपने पावर, साधन, ज्ञान, उर्जा का उपयोग जिस क्षमता के साथ सरकार के लिये करते है, उसी क्षमता के साथ समाज के लिये कर सके, अन्यथा सेवानिवृति के बाद समाज के विकास कि बात करना, और उसे दिशा देना भ्रामक है क्योंकि सेवानिवृत्ति के बाद उनके सारे हथियार, पावर, उम्र, उर्जा, क्षमता, जोश अन्तिम पड़ाव में होते है, ऐसे में समाज का नेतृत्व  करना मुश्किल हों जाता है, मगर सरकारी सेवा मे रहते हुए, समाज के लिए किये गये कार्यो की तरफ सबका ध्यान जाता है। और नेतृत्त्व करना आसान भी हो जाता है।

Post a Comment

0 Comments