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क्या इस्लाम ग़ैर मुसलमानों से दोस्ती करने से माना करता है?






क्या इस्लाम ग़ैर मुसलमानों से दोस्ती करने से माना करता है?




Friendship with non Muslim: एक बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी है की इस्लाम ग़ैर-मुसलमानों से दोस्ती करने से माना करता है। जो दीन (धर्म) पूरी इंसानियत को जोड़ने की बात करता है, क्या वो दीन लोगो से दोस्ती करने से रोक सकता है? दुनिया में शायद ही कोई मुस्लमान ऐसा हो जिसका कोई ग़ैर मुस्लमान दोस्त न हो, तो क्या ये सब मुस्लमान इस्लाम और क़ुरआन के ख़िलाफ़ कर रहे हैं? बिल्कुल नहीं, क़ुरआन ने ग़ैर-मुसलमानों से दोस्ती करने से नहीं रोका। लेकिन जो लोग ये ग़लतफ़हमी फैलाते हैं वो क़ुरआन की आधी-अधूरी आयत पेश करते हैं जहाँ कहा गया है की ग़ैर-मुस्लमान से दोस्ती नहीं करना।



क़ुरआन शरीफ में किसी एक मसले पर या किसी एक शब्द पर क़ुरआन के अलग-अलग हिस्सों में बहुत सारी बातें आई। और क़ुरआन को समझने का उसूल और सिद्धांत ये है की किसी एक मसले पर क़ुरआन में जहाँ-जहाँ उस मसले से सम्बंधित जितनी आयात हैं उन्हें एक जगह इकट्ठा करके समझा जाये। क्योंकि क़ुरआन में एक मसले पर कही किसी आयत में बहुत विस्तार से उसूल बताये और कहीं उसी मसलो को संक्षिप्त में बताया। क़ुरआन में ग़ैर-मुसलमानों से दोस्ती करने के मसले पर कहीं किसी आयत में माना किया, वहीं किसी आयत में ये विस्तार से बताया बताया, क्यों नहीं करना। अगर इस उसूल को छोड़ देंगे तो फिर सिर्फ ग़लतफ़हमी ही नहीं बल्कि लोग जगह-जगह आपका शोषण भी करेंगे।





Friendship with non Muslim – आईये अब दोस्ती के मसले पर क़ुरआन की आयात देखते हैं:



لَا يَنْهَاكُمُ اللَّهُ عَنِ الَّذِينَ لَمْ يُقَاتِلُوكُمْ فِي الدِّينِ وَلَمْ يُخْرِجُوكُمْ مِنْ دِيَارِكُمْ أَنْ تَبَرُّوهُمْ وَتُقْسِطُوا إِلَيْهِمْ ۚ إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُقْسِطِينَ





अल्लाह तुम्हें इससे नहीं रोकता कि तुम उन लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करो और उनके साथ न्याय करो, जिन्होंने तुमसे धर्म के मामले में युद्ध नहीं किया और न तुम्हें तुम्हारे अपने घरों से निकाला। निस्संदेह अल्लाह न्याय करनेवालों को पसन्द करता है (60:8)



إِنَّمَا يَنْهَاكُمُ اللَّهُ عَنِ الَّذِينَ قَاتَلُوكُمْ فِي الدِّينِ وَأَخْرَجُوكُمْ مِنْ دِيَارِكُمْ وَظَاهَرُوا عَلَىٰ إِخْرَاجِكُمْ أَنْ تَوَلَّوْهُمْ ۚ وَمَنْ يَتَوَلَّهُمْ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ





अल्लाह तो तुम्हें केवल उन लोगों से मित्रता करने से रोकता है जिन्होंने धर्म के मामले में तुमसे युद्ध किया और तुम्हें तुम्हारे अपने घरों से निकाला और तुम्हारे निकाले जाने के सम्बन्ध में सहायता की। जो लोग उनसे मित्रता करें वही ज़ालिम है (60:9)



स्पष्ट है, क़ुरआन ने सिर्फ 2 लोगो से दोस्ती करने से रोका



1. जो धर्म की वजह से युद्ध करते हैं।

2. जिन्होंने तुम्हें तुम्हारे अपने घरों से निकाला और तुम्हारे निकाले जाने के सम्बन्ध में सहायता की।


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